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शीषॅक: भारतीय संविधान राष्ट्र की आधारशिला

लेखक: ग्रनविल ऑस्टिन

अनुवाद: नरेशा गोखामी

पुष्ट: 536

मूल्य: ₹795

प्रकाशक: वाणी प्रकाशन


समझिक प्रशसनिक सेवा के विधार्थियों को भारतीयसविधान पढ़ाते हैं | समस्झिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विषयों में इनकी रूचि हैं | ग्रनविल ऑस्टिन की पुस्तक `भारतीय सविधान, राष्ट्र की आधारशिला` अध्ययन करने के पश्चात ज्ञान होता हैं की क्यों उन्हें भारतीय संविधान का प्रखर विदान कहा जाता है | पुस्तक का अनुवाद नरेश गोस्वामी ने किया हैं | प्राय: ऐसा प्रतीत हुआ है अंग्रेगी से अनुबदित पुस्तके अपना सार, अनुवाद के क्रम में कही खो देती हैं | उनका सब्दार्थ तो होता हैं, भावार्थ गायब रहता हैं | परइस पुस्तके में ऐसा नही हैं |
ारत का संविधान एक विस्तुर्त समावेशी संग्रह हैं | जिसकी भासा सोच बिचार कर जटिल रखी गयी है |ऐसा इसलिए किया गया जिस से संविधान की विभिन्न अभिव्यति न हो | ऐसे जटिल भासा संविधान का सरलता एवं सगमता से व्याख्यान करना उसके लिए हि संभव है जिसने इस ग्रन्थ को भले भांति ह्द्यगम कर लिया हो | भारत का संविधान एक दूरगामी सोच का परिणाम है | स्वतंत्रता की ७० वर्षो पश्चात भी इसकी सार्थकताबनी हुई

है | औस्टिन बताते है की भारतीय संविधान कई उदेश्यों की पूर्ति करता हैं, भजिनमे सबसे सबसे महत उदेश्य जन साधारण की बुनियादी आवश्यकताओं की

पूर्ति करना है | लेखक संविधान सभा के गठन से सुरुआत करते हैं जहाँ वह लिखते हैं की सारे सदस्य लोकतान्त्रिक रवैय्ये से किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचते थे | विरोधौ के मध्य में किस प्रकार स्वीकृति बनती है, यह सदस्यों की परिपक्वता द्शातॉ है | डांक्टर अम्बेडकर ने संविधान सभा से कहा था `आज़ादी मिलने के साथ अब हमारे सारे बहाने खत्म हो गए है जिनके तहत हम हर गलती के लिए अंग्रेगी को ज़िम्मेदार ठहरा देते थे | अगर इसके बाद कुछ भी गलत होता है तो हम अपने अलावा किसी और को दोषी नही ठहरा सकते |' इसीलिए हर अनुच्छेद आर्टिकल को बहुत सोच बिचार कर डाला गया है, विभिन्न राष्ट्र से ली गयी सामग्री को भारतीय स्वरूप में ढाला एवंपिरोया गया है | जैसे अमरीका में न्यायपालिका सवोंपरि है और ब्रिटैन में वहां की संसद | पर भारत में किसी भी एक अंग को सवोंपरि नहीं रहा गया अपितु भारत की सवोधानिक प्रणाली यह सुनिचित करती है की कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं विधायिका एक दुसरे के कर्यसेत्र का अतिक्रमण न करें, तत्पचित ऑस्टिन संविधान के मूल तत्वों पर आते हैं जैसे की मौलिक अधिकार, राष्ट्र के निति निर्देशक सिद्धांत, क्रय पालिका , विधायिका, न्यायपालिका, संघवाद, शक्ति विभाज़न, राजस्व का वितरण, संशौधन तया भासा | पुस्तक के अंत में सारगभिर्त निष्कषॅ है जो पाठक को संविधान के अलोचातमाक पक्स तया इसका सफलतापुर्वक प्रचालन समझाते हैं | संविधान की सफलता का श्रेय लेखक ने कई कारको का दिया है, जिनमे प्रमुख करण हैं,: कई देशो के स्न्वोधानिक दृष्टांतो का आत्मसात, संविधान सभा के कुछ सदस्यों का स्वतंत्रता पूर्व सरकार चलने का अनुभव, विलक्षण योग्य नेतुत्व, एक वचॅर्स्व्यी पार्टी इत्यादि |
संविधान सभा के कई सारे रोचक प्रसंगो का रेखांकित कर के लेखक ने पाटको को बांधे रखा है | किसी भी जटिल पुस्तक पर ऐसी रोचक एवं सुगम टिप्पणीदुर्लभ ही होती है | औसेटन ऐसा करने में सफल रहे हैं | यह पुस्तक विधि एवं प्रशासनिक सेवाओ के विधार्यिओं के लिए बहु उपयोगी हैं |