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ानव सभ्यता के में तकनीक के कदमों की छाप पग-पग पर दिखती है | किताबे भी इससेअछूती नही हैं | पाषाण-युग की पथरीली राहों पर चलकरये आधुनिक मानव को `सिलिकन रुट` पर ले आई हैं | शिला-लेख और ताम्र-पत्र अब माइक्रोचिप में दर्ज होकर `इ-बुक' में तब्दील हो चुकी हैं | कंप्यूटर, टेबलेट, फेबलेट और मोबाइल फ़ोन पर देखी, पारी और सुनी जाने वाली इन ई-किताबों के पन्ने `बाइनरी कोड' में खुल रहे हैं | कंप्यूटर भले ही अभी तलक हर खासोआम तक न पहुँच पाया हो,लेकिन मोबाइल फ़ोन ने यह पार कर दी है | यही वजह है कि ज्यों-ज्यों मोबाइल फ़ोन की पहुँच बढ रही हैं, उशी के साथ बढ रही है इन किताबों की पाठक संख्या | कुछ समय पहले तक केवल अंग्रेगी तक सिमित रहने वाली इ-बुक ने अब हिंदी भासा भाषियों को भी अपनी जद में लेना शुरु कर दिया है | हिंदी की इस व्यापक क्षमता को ध्यान में रखते हुए ही अब हिंदी प्रकाशक ई-बुक से काई परहेज नही कर रहे हैं | हिंदी के कई जाने-माने प्रकाशक अपनी बहुत-सी किताबों के ई-संस्करण ले आए हैं और कुछलाने की तैयारी में हैं |
संदीप देव पिछ्ले कई बर्षो से डिजिटल मिडिया-प्रकाशन से जुड़े हुए हैं और हैरी पांटर श्रृंखला का प्रकाशन करने वाले प्रकाशन ब्लूम्सबरी की हिंदी में पिछली मूल पुस्तक के लेखक भी हैं | वे बताते है की पुस्तक प्रकाशन क्षेत्र में ई-बुक की फिलहाल पांच प्रतिशत हि भागीदारी है | आजकल लोग ई-बुक पढ़ने की अपेक्षा उसका स्टोर ज्यादाकर रहे हैं | उनमें ई-बुक डाउनलोड करने की प्रव्रत्रि बढ रही है | ऐसे भी कई उदहारण है जिनमे देखा गया है कि अगर इ-बुक को ज्यादा पसंद किया गया है तो प्रकाशक को पाठकों की मांग और अपने मुनाफे के लिए उसकी सामान्य किताब का भी प्रकाशन करना पड़ा है |
ई-बुक की राह में आने वाली तकनीकी बाधाए' सामान्य किताब को ई-बुक के रूप में परिबर्तित करने में कई प्रकार की दिक्कते पेश आती हैं, खासतौर पर हिंदी की ई-बुक तैयार करने में | तकनीकी जानकारी बताते हैं की गणित और बिज्ञान जैसे विषयों पर हिंदी की ई-बुक बनाने में सुत्र या विशेस चिन्हों को लगाने में परेशानी आती है | चुकि ई-बुक के लिए यूनिकोड फोंट की ज़रूरत पड़ती है और पुरानी परंपरागत पुस्तके सामान्य फोंट में बनी होती हैं इसलिए उन्हें ई-बुक के रूप में तब्दील करने के लिए उसकी पाठ्य समग्री को यूनिकोड में परिबर्तित करना पड़ता हैं | इस प्रक्रिया में कुछ विशेष चिन्ह या वर्तनी में बदलाव की आशंका रहती है | कई डिवाइस ऐसे होते हैं जिनमे सीमित फॉन्ट रहते हैं इसलिए हिंदी की ई-बुक में इस पहलु पर भी ध्यान देना पड़ता है और फॉन्ट भी इनबिल्ट करने पर जाते हैं ताकि उसे सपोर्ट करने वाले हर डिवाइस में वह सही ढंग से पाठक के सामने आई और त्रुटि न दिखाई दे |

यानि ई-बुक और सामान्य बुक एक-दुसरे को प्रोत्साहन दे रही है | इनमें प्रतिस्पधॉ नही है, बल्कि ये एक-दुसरे का विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं | कई जगह ई-बुक ज्यादा लाभकारी दिखती हैं तो कई जगह सामान्य किताबे | उदाहरन के लिय शोध-अध्ययन करने वाले अधिकांश लोग ई-बुक का तो इस्तेमाल करते हैं, साथ हि साथ उन्हें अपने उपयोग के लिए उसका प्रिंटआउट भी लेना पड़ता हैं क्योंकि सभी ई-बुक में टेक्स्ट ने नोट बनाने, अंडरलाइन या हाईलाइट करने का विकल्प नही होता | दूसरी ओर, ऐसे भी कई उदाहरन हैंजिनमें पुरानी किताबों को ई-बूकके रूप में संरक्षित किया जा रहा हैं | साहित्य अकादमी के ब्रिक्री प्रबंधक राजेश कुमार गुप्ता बताते हैं, `हमारे यहाँ 24 भाषाओ में किताबे छपती हैं | और सबसे ज्यादा मांग हिंदी में रहती है | हिंदी में सबसे ज्यादा किताबे बिक रही हैं | ई-बुक पर आजकल काफी ध्यान दिया जा रहा है | सरकार की ओर से भी इस पर काफी जोर है | लोग इन्हें अपना भी रहे हैं, लेकिन अभी इनका ज्यादा प्रचलन नहीं है, क्योंकि अभी देश में ई-साक्षरता की दर कम हि है | इसलिए ई-बुक की बहुत ज्यादा मांग नही है | हलाकि आगे इसके लिए भी योजना है और मंत्रालय की तरफ से भी समय-समय पर इस संबंध में निर्देश दिए जाते हैं | ई-बुक पर भी काम चल रहा है | आने वाले समय में ई-बुक भी आएगी |'
ई-बुक तैयार करने में एक समस्या डिवाइस या हार्डवेयर की विभिन्नता को लेकर भी रहती है | कई पाठक उन्हें कंप्यूटर पर खोलकर पढना चाहता है , तो कोई अपने मोबाइल, टेबलेट या किंडल जैसे किसी अन्य डिवाइस पर | इसलिए ई-बुक तैयारकरने में इस बात को ध्यान में रखकर चलना पड़ता है की वह चार इंच वाले डिस्प्ले पर भी ठीक दिखाई दे और आठ या 21 इंच वाले डिस्प्ले पर भी | उपन्यास जैसी ई-पुस्तके तो सामान्य टेक्स्ट वाली होती हैं इसलिए उनकी ई-बुक बनाने में ज्यादा परेशानी नही होती, लेकिन जिन पुस्तकों में चित्र, ग्राफ आदि का काफी प्रयोगरहता है, उन्हें सभी डिवाइस के अनुरूप व्यवस्थित करने में खासी मशक्कत करनी पडती है |
प्रश्नोतर वाली किताबे को ई-बुक के रूप में तैयार करने में भी काफी तकनीकी पेचीदगी रहती है कक्योंकि उन्हें इस तरह से तैयार किया जाता है की हर प्रश्न का सही उत्तर पाठकों को आसानी ने मिल जाए | इसके लिए इनमें प्रश्नों के आस-पास हि कई लिंक या हाईपरलिंक देना पड़ता है |
ई-बुक में आइकॉन, मेटा डिस्क्रिप्शन आदि का भी ठीक से प्रयोग करना होता है | इसी प्रकार विडोज़ आइनक्स, आईओएस, एंड्रॉयड जैसे आँपरेटिंग सिस्टम के लिए सामान्यत: ई-बुक के अलग-अलग फारमेट की जरुर रहती है | इसी तरह इनके प्रोग्राम या ऐप भी अलग-अलग होते हैं |